अजेय समय

Thursday, May 19, 2011

शहर में मेरे ....

शहर में मेरे इंसानियत करती सवाल है
कैसे कोई चुराके सबकुछ बन जाता ईमानदार है
किसी को उसका हक मिलता है जैसे कोई खैरात है
और कोई कुछ न करके भी होता मालामाल है
शहर में मेरे इंसानियत हुई शर्मशार है
सरेआम क़त्ल करने वाला घूमता खुले आम है
कानून और इंसानियत यहाँ पैसे की गुलाम है
शहर में मेरे .....
शहर में मेरे बन गये कैसे हालात है
बसंत में भी पतझड़ आबाद है
चंद रुपयों में यहाँ बिकता ईमान है
हर बिकने बेचने वाले की नियत एक सवाल है
हर माथे पर शिकन और हर शिकन गुमनाम है
शहर में मेरे......
शहर में मेरे फिर भी कुछ तो बात है
हर अजनबी यहाँ लगता अपना ख़ास है
शहर में मेरे हर शख्स परेशान है
किसी ने खोया बचपन तो किसी ने खोयी ज़ुबान है
यहाँ हर दिन के अपने किस्से हर रात में वो बात है
शहर में मेरे फिर भी कुछ तो बात है
हर अजनबी यहाँ लगता अपना ख़ास है
शहर में मेरे...

....  '' प्रीति पोरवाल ''