अजेय समय

Tuesday, June 28, 2011

कुछ यादें तुम्हारी

देर हुई अब,
जाना है-
बिना कुछ कहे-सुने ,
पढ़ ना पाई तुम्हे ,
मै ही
शायद ;

जाना है -
बिना कुछ कहे-सुने ,
मत पूछना तुम भी 
अब
कुछ भी ,

कुछ ;
समान पड़ा है
तुम्हारा;
मेरे पास;
ना होगा तुम्हारी 
जानकारी में,

अब भी,
उसी दराज़
में पड़ी है -
कुछ यादें तुम्हारी
समय मिले तो
ले जाना मुझसे,

आज यहाँ ,
जब
बारिश हुई फिर से ,
बह निकलीं वों 
उस;
धूल चढ़ी टूटी,
पुरानी दराज़ से,
एक बार फिर;

ले जाओ
तुम इन्हें भी अपने-
साथ;
कहीं दूर
बहुत दूर.... 
  .......प्रीति पोरवाल 

Saturday, June 18, 2011

हाँ.... तो हम कह रहे थे...

हमारे मुहल्ले में एक शर्मा जी है ....क्या कहा..आपके मुहल्ले में भी हैं  ...अरे होंगे भाई किसने मना किया है ..ग्लोबलाईजेशन एज है शर्मा जी कही भी पाए जा सकते हैं ...और वैसे भी एक-आध शर्मा और वर्मा जी हर मोहल्ले में अपनी उपस्थति दर्ज कराते अक्सर ही पाए जाते हैं ।

...हाँ तो हम कह रहे थे कि हमारे मुहल्ले में एक शर्मा जी है जो कि वैसे तो बहुत समझदार और काबिल है ...ये बात और है कि समझदारी की बात उन्होंने कभी की नही और काबिलयत दिखाने का मौका उन्हें अभी तक मिला नही....खैर मौका क्यों नही मिला इस पर बहस फिर कभी ....।

हाँ ...तो हम कहाँ थे ..?..?..? ..कहाँ थे भाई ...??...अरे बोलबो ...??

....हाँ याद आया ...तो हम कह रहे थे कि हमारे मुहल्ले में एक शर्मा जी हैं...क्या कहा बता चुकी हूँ आगे बताऊं... अरे आप दो मिनट चुप नही बैठ सकते क्या ...थोडा सा भी पेसेंस नही है.....ऐसे बार-बार बीच में टोकेंगे तो बात आगे नही बढ़ पाएगी .....क्या कहा वैसे भी कौन सी आगे बढ़ रही है..।

हाँ तो हम कह रहे थे... ये जो शर्मा जी है बेचारे हमेशा एक गम्भीर सी मुद्रा में रहते हैं....और मुहल्ले के दूसरे वर्मा जी और शुक्ला जी को ज्यादा भाव भी नही देते ...क्योकि इनका व्यक्तिगत तौर पर मानना है कि किसी को ज्यादा भाव देने से वो सिर पर आ बैठता है ..और दूसरा इससे खुद के भाव गिर जाते हैं..।

चलिए तो अब असल बात पर आते हैं..........तो हम कह रहे थे कि हमारे मुहल्ले में जो शर्मा जी हैं...पता नही खुद को क्या समझते हैं....खुद तो घर में औकाद नही है दो कौड़ी की और बात तो ऐसे करते हैं कि बड़े बड़े गच्चे खा जाए ...अभी कल शाम की ही बात ले लीजिये बड़ी गम्भीर मुद्रा में चले आ रहे थे ...आते ही ऐसे बोलने लगे जैसे सारी दुनियादारी इनसे ही चलती हो.... बोले ...सरकार इतने घटिया स्तर की राजनीति भी कर सकती है बताइए ..सुषमा जी ने राजघाट पर दो-चार ठुमके क्या लगा दिए ...सरकार उनको नचनिया और उनकी पार्टी को भांड कहने लगी...। मैंने पलट कर कहा ...ये क्या बात हुई दो चार ठुमके लगा दिए ..अरे ऐसे कैसे लगा दिए ठुमके...हमारे देश में नाचने और नचवाने का अधिकार केवल सरकार के पास होता है...सरकार का जब मन होगा वो नाचेगी और जब मन होगा देश की जनता और विपक्ष को अपने इशारों पर नचाएगी भी...।

शर्मा जी वैसे तो है भले आदमी पर आरग्यु बहुत करते हैं ...ऐसे कहां मानने वाले थे ...बोले देखिये हमारे संविधान ने हमे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता दी है ....अब कोई खुश होगा तो जताएगा तो है ही ना...। हमे भी गुस्सा आ गया ...अमां यार अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता दी है ...नाचने की थोड़े ही .....अब बताइए कौन से संविधान में लिखा है कि आप ऐसे सार्वजनिक तौर पर नाच सकते हैं ...

अब कल को आप कहेंगे कि देश में अभिव्यक्ति कि स्वतंत्रता है तो चिदम्बरम और दिग्विजय पर जूता उठाना भी सही है ..आप कहने लगेंगे कि ये भी अभिव्यक्ति के माध्यम हैं ...तो हम मान लेंगे क्या ...। और तो और आप तो ये भी कह सकते हैं कि माननीय श्री दिग्विजय की जूता-दिखाई प्रकरण में पकड़े गये व्यक्ति को यूँ सरेआम पीटना गलत है और ऐसे कृत्य हमारे कानून और समाज पर धब्बा है  ..। आप को लगता है हम ये सब मान लेंगे...हमारे देश में जूता चलाने और दिखाने का अधिकार केवल सरकार के पास है सरकार जब चाहे देश कि जनता को जूता दिखा सकती है और जरूरत पड़ने पर उसे चला भी सकती है...।

Saturday, June 11, 2011

क्या सचमुच ...तुम्हे कुछ भी याद नही ..?

बहुत दुःख होता है
मुझे,
जब तुम कहते हो
तुम्हे,
याद नही,
वो मेरा साथ,
वो सुनहरी रात,

और;
वो अनकही सी बात,
जो थी
बिलकुल मौन,
बिलकुल निशब्द,
रात के
उस सन्नाटे की तरह
जिसमे हम सुन सकते है
अपने ह्रदय की धडकन
वो भी
बिलकुल साफ़


तुम्हे कुछ भी
याद नही,
क्या सचमुच,
तुम्हे
कुछ भी याद नही ..?


दुःख होता है मुझे,
फिर क्या याद रखते हो तुम,
दिन के केवल
२४ घंटे,
साल के केवल
४ ही मौसम,
और चान्द्र्मा की
केवल १६ कलाएं ..?


दिन के २५ वें घंटे का क्या ..?
जो सबसे लम्बा होता है,
साल के ५ वें मौसम का क्या..?
जो कभी आता ही नही,
और चंद्रमा की १७ वीं
सबसे खूबसूरत कला 
उसका क्या ...?
जो केवल
तुम्हारे लिए है यहाँ,
उसका क्या  ....?
                    ( मेरी थोड़ी सी बकवास ...उम्मीद है कि आप लोग झेल ले जायेंगे.. .. सादर )
                                                                                                   ....प्रीति पोरवाल..