मैं इसी सब सोच में बैठी ही थी कि मेरी आँख लग गयी ...मैंने देखा कि एक गिरगिट मुझे घूर रहा है ...।.मैंने उससे पूछा क्या हुआ....बोला देख रहा हूँ कितना धूर्त होता है इंसान ....मुझे समझते देर न लगी कि ये अपने ऊपर लगे व्यर्थ के लांछन से परेशान है ।.... अपना बचाव करते हुए मैं उससे कहने लगी ...देखो तुम मुझे गलत समझ रहे हो ...मैं तो साधारण सी इंसान हूँ मुहावरे वैगहरा से मेरा कोई लेना देना नही है....।
बोला देखो तुम ज्यादा स्मार्ट मत बनो अच्छी तरह से जनता हूँ तुम इंसानों को...।
उसकी व्यथा को कम करने के उद्देश्य से मैंने कहा देखो तुम्हारा गुस्सा जायज है पर तुम जिस मुहावरे कि बात कर रहे हो वो कौन सा आज का आज बनाया गया है .... हजारो वर्षो से चला आ रहा है ये तो .....तब निश्चित तौर पर इंसान कि ये हालत नही होगी .....।
और वैसे भी जब पहली बार तुम्हे किसी इंसान ने रंग बदलते देखा होगा तो वो जरुर कोई भाषा-विज्ञानी या समाजशास्त्री रहा होगा जो कि इंसानों की उच्च प्रजाति है वरना आम इंसान को न तो इतनी फुर्सत है और न ही उसकी इतनी जुर्रत है जो वो कुछ कहे.....।
वो चुपचाप मेरी बाते सुन रहा था मैंने सोचा कन्विंस हो गया ...।
तभी बिना कुछ बोले उसने अपनी जेब से एक मोबाइल निकला और दो मिनट खिट पिट करने के बाद बोला ....देखो तुम मुझसे झूठ मत बोलो मैंने अभी गूगल सर्च किया है ...कि तुम्हारे यहाँ आम इंसान की कितनी वैल्यू है ....तुम्हारे यहाँ लोकतंत्र कि शक्ति है और आम इंसान के हाथ में सत्ता जैसी पावर ....।.
मैं उसे समझाते हुए कहने लगी ...तुम्हारी बात बिल्कुल सही है हमारे यहाँ जनता के हाथ में पावर तो है लेकिन रोटी नही है ....और फिर पेट तो रोटी से भरता है, न कि पावर से ....।
और फिर वैसे भी तुम्हारी दुश्मनी तो इंसानों से है ..हम लोग अब इंसान नही रहे ...इंसानियत से हमको चिढ होती है .... हम लोग हिन्दू-मुस्लिम ,सिख -इसाई है और अब यादव ,पंडित ,बनिया, हो रहे है और इस पर सरकारी मुहर भी लगने वाली है......।
बोला सब समझता हूँ मैं बहुत धूर्त होते हो तुम लोग ...अरे जब तुम अपने स्वार्थ के लिए सगे रिश्तो तक का मोह नही करते तो भला ...हमारा क्या करोगे...बोलते -बोलते वो चुप हो गया ...पर इस बार मेरे पास बोलने के लिए कुछ नही था ...शायद मैं उससे कन्विंस हो चुकी थी....। .