अजेय समय

Thursday, April 14, 2011

गिरगिट और इंसानियत के रंग

पता नही पहली बार कब किस इंसान ने गिरगिट को रंग बदलते देखकर उसके ऊपर मुहावरा बना दिया होगा। निश्चित तौर पर तो नही बस केवल एक अनुमान ही लगाया जा सकता है कि गिरगिटओ  में इस बात को लेकर इंसानों के विरुद्ध विद्रोह जरुर होगा....। लेकिन क्या पता तब इंसान भी इतने रंग न बदलता रहा हो ....।

मैं इसी सब सोच में बैठी ही थी कि मेरी आँख लग गयी  ...मैंने देखा कि एक गिरगिट मुझे घूर रहा है ...।.मैंने उससे पूछा क्या हुआ....बोला देख रहा हूँ  कितना धूर्त होता है  इंसान ....मुझे समझते देर न लगी कि ये अपने ऊपर लगे व्यर्थ के लांछन से परेशान है ।....  अपना बचाव करते हुए मैं उससे कहने लगी ...देखो तुम मुझे गलत समझ रहे हो ...मैं तो साधारण सी इंसान हूँ मुहावरे वैगहरा से मेरा कोई लेना देना नही है....।

बोला देखो तुम ज्यादा स्मार्ट मत बनो अच्छी तरह से जनता हूँ तुम इंसानों को...।

उसकी व्यथा को कम करने के उद्देश्य से मैंने कहा देखो तुम्हारा गुस्सा जायज है पर तुम जिस मुहावरे कि बात कर रहे हो वो कौन सा आज का आज बनाया गया है .... हजारो वर्षो से चला आ रहा है ये तो .....तब निश्चित तौर पर इंसान कि ये हालत नही होगी .....।

और वैसे भी जब पहली बार तुम्हे किसी इंसान ने रंग बदलते देखा होगा तो वो जरुर कोई भाषा-विज्ञानी या समाजशास्त्री रहा होगा जो कि इंसानों की उच्च प्रजाति है वरना आम इंसान को न तो इतनी फुर्सत है और न ही उसकी इतनी जुर्रत है जो वो कुछ कहे.....।

वो चुपचाप मेरी बाते सुन रहा था मैंने सोचा कन्विंस हो गया ...।

तभी बिना कुछ बोले उसने अपनी जेब से एक मोबाइल निकला और दो मिनट खिट पिट करने के बाद बोला ....देखो तुम मुझसे झूठ मत बोलो मैंने अभी गूगल सर्च किया है  ...कि तुम्हारे यहाँ आम इंसान की कितनी वैल्यू है ....तुम्हारे यहाँ लोकतंत्र कि शक्ति है और आम इंसान के हाथ में सत्ता जैसी पावर ....।.

मैं उसे समझाते हुए कहने लगी ...तुम्हारी बात बिल्कुल सही है हमारे यहाँ जनता के हाथ में पावर तो है लेकिन रोटी नही है ....और फिर पेट तो रोटी से भरता है, न कि पावर से ....।

और फिर वैसे भी तुम्हारी दुश्मनी तो इंसानों से है ..हम लोग अब इंसान नही रहे ...इंसानियत से हमको चिढ होती है .... हम लोग हिन्दू-मुस्लिम ,सिख -इसाई है और अब यादव ,पंडित ,बनिया, हो रहे है और इस पर सरकारी मुहर भी लगने वाली है......।

बोला सब समझता हूँ मैं बहुत धूर्त होते हो तुम लोग ...अरे जब तुम अपने स्वार्थ के लिए सगे रिश्तो तक का मोह नही करते तो भला ...हमारा क्या करोगे...बोलते -बोलते वो चुप हो गया ...पर इस बार मेरे पास बोलने के लिए कुछ नही था ...शायद मैं उससे कन्विंस हो चुकी थी....। .









15 comments:

  1. इन्सान का गिरगिटिया स्वरूप देख कर गिरगिट गायब हो गये हैं।

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  2. और फिर वैसे भी तुम्हारी दुश्मनी तो इंसानों से है ..हम लोग अब इंसान नही रहे

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  3. Read your post. I am quoting a poem from Deepak Bharatdep's blog as my reaction -
    बेकद्रों की महफिल में मत जाना
    बहस के नाम पर वहां बस कोहराम मचेगा
    पर कौन, किसकी कद्र करेगा।
    मुस्कराहट का मुखौटा लगाये सभी
    हर शहर में घूम रहे हैं
    जो मिल नहीं पाती खुशी उसे
    ढूंढते हुए झूम रहे हैं
    दूसरे के पसीने में तलाश रहे हैं
    अपने लिये चैन की जिंदगी
    उनके लिये अपना खून अमृत है
    दूसरे का है गंदगी
    तुम बेकद्रों को दूर से देखते रहकर
    उनकी हंसी के पीछे के कड़वे सच को देखना
    दिल से टूटे बिखरे लोग
    अपने आपसे भागते नजर आते हैं
    शोर मचाकर उसे छिपाते हैं
    उनकी मजाक पर सहम मत जाना
    अपने शरीर से बहते पसीने को सहलाना
    दूसरा कोई इज्जत से उसकी कीमत
    कभी तय नहीं करेगा।

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  4. awesome....jo kissagoi hai ...bat ko pahunchane ke tareeke main wah bahut jabardast hai.....aur sahi kaha ...is par nukkad natak bahut aasani se aur accha banaya ja sakta hai

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  5. really girgit started feeling jealous of men coz todays men hav too worn the look of girgit...behad khub likha hia kep it up...

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  6. INSAAN OR GIRGIT ME BAS FARK ITNA HAI KI INSAAN SAMJHDAR HOTA HAI,JABKI GIRGIT NAHI QKI WO EK JAANWAR HAI.............

    MERE KAHNE KA MATLAB BAS ITNA HAI........KI INSAAN KHUD KO BADALNE KE LIYE OR DUSRO KO KAST,TAKHLEEF OR PIDA DENE KE LIYE HI APNA RANG BADALTA HAI...........JABKI GIRGIT SIRF MOUSAM KE ANUSAAR APNA RANG BADAL KAR APNE AAP KO SUKUN PAHUCHATA HAI.....
    GIRGIT KR RANG BADALNE KA TATYPAR YAH NAHI KI USE KISI ANYA KO NEECHA DIKHANA HAI VA HANI PAHUCHANA HAI............

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  7. manushya ab girgit se jyada rang badalne lage hain .... insaani fitrat par gahra katakchh ...

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  8. bahut sunder ....girgit ki vyatha ka aatmiy chitran....regads ..amarjeet mishra

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  9. girgit ka rang to dikhai deta but insano ka to samajhna muskil hota hai.

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  10. one shud forgive the foe but not the friend although we know that they very frequently changes wid the time......
    But u have written very well which honestly depicts the society in it's real picture.

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  11. No words...
    You have already told the whole situation excellently...

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  12. @Suraj ji.....उनके लिये अपना खून अमृत है
    दूसरे का है गंदगी....सुंदर लाइने ...आभार
    Thanx to all for commenting here....

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  13. that is the drescription , achha likha hai , keep it up!

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  14. विचारो में मौलिकता है...लिखती रहो अच्छा लिखती हो..सादर ...

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  15. Badal gaya insaan dekho badal gaya insaan
    Bhool gaya apna farz aur imaan
    Badal gaya insaan dekho badal gaya insaan
    Jhooth ke sehlaab mein beh gaye insaan ki sachaee
    Abhishaap ban kar reh gaye kalyug mein bhalaee .... एक सार्थक पोस्ट ...आभार

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