अजेय समय

Thursday, May 19, 2011

शहर में मेरे ....

शहर में मेरे इंसानियत करती सवाल है
कैसे कोई चुराके सबकुछ बन जाता ईमानदार है
किसी को उसका हक मिलता है जैसे कोई खैरात है
और कोई कुछ न करके भी होता मालामाल है
शहर में मेरे इंसानियत हुई शर्मशार है
सरेआम क़त्ल करने वाला घूमता खुले आम है
कानून और इंसानियत यहाँ पैसे की गुलाम है
शहर में मेरे .....
शहर में मेरे बन गये कैसे हालात है
बसंत में भी पतझड़ आबाद है
चंद रुपयों में यहाँ बिकता ईमान है
हर बिकने बेचने वाले की नियत एक सवाल है
हर माथे पर शिकन और हर शिकन गुमनाम है
शहर में मेरे......
शहर में मेरे फिर भी कुछ तो बात है
हर अजनबी यहाँ लगता अपना ख़ास है
शहर में मेरे हर शख्स परेशान है
किसी ने खोया बचपन तो किसी ने खोयी ज़ुबान है
यहाँ हर दिन के अपने किस्से हर रात में वो बात है
शहर में मेरे फिर भी कुछ तो बात है
हर अजनबी यहाँ लगता अपना ख़ास है
शहर में मेरे...

....  '' प्रीति पोरवाल ''                                                                                  

14 comments:

  1. Really good :) u r a good writer............. :)

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  2. जब चीजें बिकती हों, ईमानदारी भी खरीद ली जाती है। सुन्दर अभिव्यक्ति।

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  3. प्रीति पोरवाल जी
    नमस्कार !

    शहर में मेरे इंसानियत हुई शर्मशार है
    हर शहर का यही किस्सा है …

    अच्छे काव्य प्रयास हेतु बधाई !

    भविष्य में और श्रेष्ठ सृजन के लिए हार्दिक शुभकामनाएं !

    - राजेन्द्र स्वर्णकार

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  4. ...आप सभी का कोटि-कोटि धन्यवाद!...सादर

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  5. बेहतरीन पंक्तियाँ....... शायद हर शहर का यही हाल है..... प्रासंगिक रचना

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  6. thats Great yaar.. I found u the Best... And I like it too much.. U have feelings for the common man.. really its an awesome.. I always read ur blogs... so nice Keep it up Dear..!!

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  7. very good lines prity kabhi mere blog par bhi aaye- "samrat bundelkhand"

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  8. bahut hee umda hai... Mujhe Guman Hai Ki Chaha Hai bahut Zamane Ne Mujhe

    Main Azeez To sabko hoon magar
    .
    .
    .
    Ek Zarooraton Ki Tarah..!

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  9. Prity ji.....सादर वंदे मातरम्!

    रचना ने दिलों को छुआ बधाई...!

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  10. अद्भुत सुन्दर रचना! आपकी लेखनी की जितनी भी तारीफ़ की जाए कम है!

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