मुझे,
जब तुम कहते हो
तुम्हे,
याद नही,
वो मेरा साथ,
वो सुनहरी रात,
तुम्हे कुछ भी
याद नही,
क्या सचमुच,
तुम्हे
कुछ भी याद नही ..?
दुःख होता है मुझे,
फिर क्या याद रखते हो तुम,
दिन के केवल
२४ घंटे,
साल के केवल
४ ही मौसम,
और चान्द्र्मा की
केवल १६ कलाएं ..?
दिन के २५ वें घंटे का क्या ..?
जो सबसे लम्बा होता है,
साल के ५ वें मौसम का क्या..?
जो कभी आता ही नही,
और चंद्रमा की १७ वीं
सबसे खूबसूरत कला
उसका क्या ...?
जो केवल
तुम्हारे लिए है यहाँ,
उसका क्या ....?
( मेरी थोड़ी सी बकवास ...उम्मीद है कि आप लोग झेल ले जायेंगे.. .. सादर )
....प्रीति पोरवाल..
जब तुम कहते हो
तुम्हे,
याद नही,
वो मेरा साथ,
वो सुनहरी रात,
और;
वो अनकही सी बात,
जो थी
बिलकुल मौन,
बिलकुल निशब्द,
रात के
उस सन्नाटे की तरह
जिसमे हम सुन सकते है
अपने ह्रदय की धडकन
वो भी
बिलकुल साफ़
वो अनकही सी बात,
जो थी
बिलकुल मौन,
बिलकुल निशब्द,
रात के
उस सन्नाटे की तरह
जिसमे हम सुन सकते है
अपने ह्रदय की धडकन
वो भी
बिलकुल साफ़
तुम्हे कुछ भी
याद नही,
क्या सचमुच,
तुम्हे
कुछ भी याद नही ..?
दुःख होता है मुझे,
फिर क्या याद रखते हो तुम,
दिन के केवल
२४ घंटे,
साल के केवल
४ ही मौसम,
और चान्द्र्मा की
केवल १६ कलाएं ..?
दिन के २५ वें घंटे का क्या ..?
जो सबसे लम्बा होता है,
साल के ५ वें मौसम का क्या..?
जो कभी आता ही नही,
और चंद्रमा की १७ वीं
सबसे खूबसूरत कला
उसका क्या ...?
जो केवल
तुम्हारे लिए है यहाँ,
उसका क्या ....?
( मेरी थोड़ी सी बकवास ...उम्मीद है कि आप लोग झेल ले जायेंगे.. .. सादर )
....प्रीति पोरवाल..
सुन्दर शाब्दिक उभार भावनाओं का।
ReplyDeleteबहुत ही अच्छा लिखा है
ReplyDeleteजिस तरह से तुमने मौसम, घंटे और चंद्रमा के बारे में Expalin किया वह काबिले तारीफ है
प्रभावी शाब्दिक अलंकरण लिए सुंदर प्रश्न ....... बेहतरीन रचना
ReplyDeleteYou are a good writer but if u can write something on "dreams" "khwaab" them it will be good to read .......go on....to the endless world....
ReplyDeleteसुंदर अभिव्यक्ति .....आपको एक अच्छी रचना के लिए शुभकामनाये ...
ReplyDeleteबहुत खूब प्रीती जी
ReplyDelete------------------------
कल 14/06/2011 को आपकी एक पोस्ट नयी-पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही है.
आपके सुझावों का हार्दिक स्वागत है .
धन्यवाद!
नयी-पुरानी हलचल
------------------------
कृपया कमेंट्स सेटिंग्स में वर्ड वरिफिकेशन को नो (NO) कर दें .इससे अन्य पाठकों को अपना अभिमत देने में असुविधा होती है.
....प्रवीण जी, योगेश, डॉ मोनिका शर्मा जी, Xp5130ANURAG, सुनील यशवंत माथुर जी ..आप सभी को बहुत बहुत धन्यवाद...!
ReplyDeleteयशवंत जी आपके सुझाव के लिए विशेष रूप से धन्यवाद....सादर
वह २५ वन घंटा सबको समझ नहीं आता ... और न ही पांचवा मौसम .. प्रभावशाली रचना
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर शब्दों में अभिव्यक्ति दी है....
ReplyDeleteभावों में गहराई भी है और माधुर्य भी.बढ़िया
ReplyDeleteवाह बहुत खूब.काव्य में भी और गध्य में भी. दोनों में प्राभावशाली है आपकी अभिव्यक्ति.अभी आपका एक व्यंग लेख भी पढ़ा शर्मा जी वाला.
ReplyDeleteरोचक शैली है.
अच्छा लगा आपका ब्लॉग.
आपका कोई जबाव नही...जी...
ReplyDeleteगहरे भाव सुंदर अभिव्यक्ति. शुभकामनायें.
ReplyDeleteदिन के २५ वें घंटे का क्या ..?
ReplyDeleteजो सबसे लम्बा होता है
साल के ५ वें मौसम का क्या..?
जो कभी आता ही नही
और चंद्रमा की १७ वीं
सबसे खूबसूरत कला
उसका क्या ...?
शब्दों को पिरो कर गूंथी गयी खूबसूरत कविता....
MAST COMMENT
ReplyDeleteदिन के २५ वें घंटे का क्या ..?
जो सबसे लम्बा होता है
साल के ५ वें मौसम का क्या..?
जो कभी आता ही नही
और चंद्रमा की १७ वीं
सबसे खूबसूरत कला
उसका क्या ...?
शब्दों को पिरो कर गूंथी गयी खूबसूरत कविता.
bhawnao ko kaphi achchhi trh se abhiwykt kiya hai aap ne.
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रेम भाव से परिपूर्ण रचना...
ReplyDeleteआभार...
मेरे ब्लॉग पे आपका स्वागत है -
mymaahi.blogspot.com