देर हुई अब,
पढ़ ना पाई तुम्हे ,
मै ही
शायद ;
जाना है -
बिना कुछ कहे-सुने ,
कुछ भी ,
कुछ ;
समान पड़ा है
तुम्हारा;
अब भी,
उसी दराज़
में पड़ी है -
कुछ यादें तुम्हारी
समय मिले तो
ले जाना मुझसे,
आज यहाँ ,
जब
बारिश हुई फिर से ,
उस;
धूल चढ़ी टूटी,
पुरानी दराज़ से,
एक बार फिर;
ले जाओ
तुम इन्हें भी अपने-
साथ;
कहीं दूर
जाना है-
बिना कुछ कहे-सुने ,पढ़ ना पाई तुम्हे ,
मै ही
शायद ;
जाना है -
बिना कुछ कहे-सुने ,
मत पूछना तुम भी
अब कुछ भी ,
कुछ ;
समान पड़ा है
तुम्हारा;
मेरे पास;
ना होगा तुम्हारी
जानकारी में,ना होगा तुम्हारी
अब भी,
उसी दराज़
में पड़ी है -
कुछ यादें तुम्हारी
समय मिले तो
ले जाना मुझसे,
आज यहाँ ,
जब
बारिश हुई फिर से ,
बह निकलीं वों
धूल चढ़ी टूटी,
पुरानी दराज़ से,
एक बार फिर;
ले जाओ
तुम इन्हें भी अपने-
साथ;
कहीं दूर
बहुत दूर....
.......प्रीति पोरवाल