अजेय समय

Saturday, June 18, 2011

हाँ.... तो हम कह रहे थे...

हमारे मुहल्ले में एक शर्मा जी है ....क्या कहा..आपके मुहल्ले में भी हैं  ...अरे होंगे भाई किसने मना किया है ..ग्लोबलाईजेशन एज है शर्मा जी कही भी पाए जा सकते हैं ...और वैसे भी एक-आध शर्मा और वर्मा जी हर मोहल्ले में अपनी उपस्थति दर्ज कराते अक्सर ही पाए जाते हैं ।

...हाँ तो हम कह रहे थे कि हमारे मुहल्ले में एक शर्मा जी है जो कि वैसे तो बहुत समझदार और काबिल है ...ये बात और है कि समझदारी की बात उन्होंने कभी की नही और काबिलयत दिखाने का मौका उन्हें अभी तक मिला नही....खैर मौका क्यों नही मिला इस पर बहस फिर कभी ....।

हाँ ...तो हम कहाँ थे ..?..?..? ..कहाँ थे भाई ...??...अरे बोलबो ...??

....हाँ याद आया ...तो हम कह रहे थे कि हमारे मुहल्ले में एक शर्मा जी हैं...क्या कहा बता चुकी हूँ आगे बताऊं... अरे आप दो मिनट चुप नही बैठ सकते क्या ...थोडा सा भी पेसेंस नही है.....ऐसे बार-बार बीच में टोकेंगे तो बात आगे नही बढ़ पाएगी .....क्या कहा वैसे भी कौन सी आगे बढ़ रही है..।

हाँ तो हम कह रहे थे... ये जो शर्मा जी है बेचारे हमेशा एक गम्भीर सी मुद्रा में रहते हैं....और मुहल्ले के दूसरे वर्मा जी और शुक्ला जी को ज्यादा भाव भी नही देते ...क्योकि इनका व्यक्तिगत तौर पर मानना है कि किसी को ज्यादा भाव देने से वो सिर पर आ बैठता है ..और दूसरा इससे खुद के भाव गिर जाते हैं..।

चलिए तो अब असल बात पर आते हैं..........तो हम कह रहे थे कि हमारे मुहल्ले में जो शर्मा जी हैं...पता नही खुद को क्या समझते हैं....खुद तो घर में औकाद नही है दो कौड़ी की और बात तो ऐसे करते हैं कि बड़े बड़े गच्चे खा जाए ...अभी कल शाम की ही बात ले लीजिये बड़ी गम्भीर मुद्रा में चले आ रहे थे ...आते ही ऐसे बोलने लगे जैसे सारी दुनियादारी इनसे ही चलती हो.... बोले ...सरकार इतने घटिया स्तर की राजनीति भी कर सकती है बताइए ..सुषमा जी ने राजघाट पर दो-चार ठुमके क्या लगा दिए ...सरकार उनको नचनिया और उनकी पार्टी को भांड कहने लगी...। मैंने पलट कर कहा ...ये क्या बात हुई दो चार ठुमके लगा दिए ..अरे ऐसे कैसे लगा दिए ठुमके...हमारे देश में नाचने और नचवाने का अधिकार केवल सरकार के पास होता है...सरकार का जब मन होगा वो नाचेगी और जब मन होगा देश की जनता और विपक्ष को अपने इशारों पर नचाएगी भी...।

शर्मा जी वैसे तो है भले आदमी पर आरग्यु बहुत करते हैं ...ऐसे कहां मानने वाले थे ...बोले देखिये हमारे संविधान ने हमे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता दी है ....अब कोई खुश होगा तो जताएगा तो है ही ना...। हमे भी गुस्सा आ गया ...अमां यार अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता दी है ...नाचने की थोड़े ही .....अब बताइए कौन से संविधान में लिखा है कि आप ऐसे सार्वजनिक तौर पर नाच सकते हैं ...

अब कल को आप कहेंगे कि देश में अभिव्यक्ति कि स्वतंत्रता है तो चिदम्बरम और दिग्विजय पर जूता उठाना भी सही है ..आप कहने लगेंगे कि ये भी अभिव्यक्ति के माध्यम हैं ...तो हम मान लेंगे क्या ...। और तो और आप तो ये भी कह सकते हैं कि माननीय श्री दिग्विजय की जूता-दिखाई प्रकरण में पकड़े गये व्यक्ति को यूँ सरेआम पीटना गलत है और ऐसे कृत्य हमारे कानून और समाज पर धब्बा है  ..। आप को लगता है हम ये सब मान लेंगे...हमारे देश में जूता चलाने और दिखाने का अधिकार केवल सरकार के पास है सरकार जब चाहे देश कि जनता को जूता दिखा सकती है और जरूरत पड़ने पर उसे चला भी सकती है...।

21 comments:

  1. क्या बात कही है..बहुत बढ़िया।

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  2. ''...और तो और आप ओ यह भी कह सकते हैं.....''
    ये अंतिम पंक्तियाँ बहुत प्रभावित करती हैं और सटीक भी हैं.
    मज़ेदार लिखा है आपने.

    सादर

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  3. आप सही कह रही थी... ऐसा ही कुछ.. :)

    " हाँ तो मै कह रही थी ये जो शर्मा जी है बेचारे हमेशा एक गम्भीर सी मुद्रा में रहते है .... और मुहल्ले के दुसरे वर्मा जी और शुक्ला जी को ज्यादा भाव भी नही देते ... क्योकि इनका व्यक्तिगत तौर पर मानना ​​है कि किसी को ज्यादा भाव देने से वो सिर पर आ बैठता है .. और दूसरा इससे खुद के भाव गिर जाते है ..."

    कॉपी पेस्ट करने के लिए क्षमा चाहता हूँ.. पता नही क्यों नार्मली हो नही रहा था.. :( लेकिन फाइनली हो गया.

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  4. सही बात,सरकारी कार्य में बाधा पहुँचाने के लिए सजा भी सकती है :)

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  5. अभिव्यक्ति बस व्यक्तिगत न हो।

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  6. सही है ग्लोबलाइजेशन का दौर है ... हमारे यहाँ एक विश्ववकर्मा जी अपने आपको अब शर्मा जी लिख रहे हैं .... हा हा

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  7. शर्मा जी को सिविल सोसायटी में भेजिए...

    नाम ही की तरह आपका लेखन भी सुंदर है...

    जय हिंद...

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  8. jai ho preeti ji ........aap to ek sachche arthon me kabeer hain.....kavita bhee likhiyega ......thanks

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  9. बहुत दिन हुए इलाहाबादी सुने..आज सुनकर अच्छा लगा...
    .... बहुत बढिया और परिपक्व व्यंग...

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  10. आलेख की हर पंक्ति सटीक है...... ज़बरदस्त व्यंग

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  11. aap ne sachai ko achchhi trh se kha hai

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  12. सही कहा है !100%
    mere blog par bhi aaye my blog link- "samrat bundelkhand"

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  13. बिल्कुल सही.. ऐसा व्यंग जो सच के काफी करीब है, और सही जगह पर चोट भी कर रहा है

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  14. एक दम सटीक व्यंग लिखा है....

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  15. कविताएं अच्छी लगी

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  16. एक दम झक्कास व्यंग्यएक दम झक्कास व्यंग्य

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  17. सिर्फ एक बात कहूंगा मैं। फोकस औऱ ज्यादा फोकस होता, तो बेहतर होता। जूते पर या नाच पर ही फोकस करके बात कही जाती, तो ज्यादा बेहतर पहुंचती। मतलब ऐसा मेरा विचार है, सारे विचार सही हों, ऐसा जरुरी नहीं।

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