देर हुई अब,
पढ़ ना पाई तुम्हे ,
मै ही
शायद ;
जाना है -
बिना कुछ कहे-सुने ,
कुछ भी ,
कुछ ;
समान पड़ा है
तुम्हारा;
अब भी,
उसी दराज़
में पड़ी है -
कुछ यादें तुम्हारी
समय मिले तो
ले जाना मुझसे,
आज यहाँ ,
जब
बारिश हुई फिर से ,
उस;
धूल चढ़ी टूटी,
पुरानी दराज़ से,
एक बार फिर;
ले जाओ
तुम इन्हें भी अपने-
साथ;
कहीं दूर
जाना है-
बिना कुछ कहे-सुने ,पढ़ ना पाई तुम्हे ,
मै ही
शायद ;
जाना है -
बिना कुछ कहे-सुने ,
मत पूछना तुम भी
अब कुछ भी ,
कुछ ;
समान पड़ा है
तुम्हारा;
मेरे पास;
ना होगा तुम्हारी
जानकारी में,ना होगा तुम्हारी
अब भी,
उसी दराज़
में पड़ी है -
कुछ यादें तुम्हारी
समय मिले तो
ले जाना मुझसे,
आज यहाँ ,
जब
बारिश हुई फिर से ,
बह निकलीं वों
धूल चढ़ी टूटी,
पुरानी दराज़ से,
एक बार फिर;
ले जाओ
तुम इन्हें भी अपने-
साथ;
कहीं दूर
बहुत दूर....
.......प्रीति पोरवाल
न जाने कहाँ, कितनी स्मृतियाँ पड़ी हुयी हैं। न जाने कहाँ, कब निकल आयेंगी।
ReplyDeleteबेहतरीन!
ReplyDeleteसादर
-----
वक़्त
सहज शब्दों में भावनाओं की सुन्दर अभिव्यक्ति. बधाई.
ReplyDeleteयह पढ़कर गुलजार का इजाजत वाला गीत याद आता है-मेरा कुछ सामान तुम्हारे पास पड़ा है।
ReplyDeleteयह जीवन भी क्या है ? आज जो हमारे सामने है कल नहीं होगा, लेकिन उसकी याद हमेशा बनी रहती है ..बस जीवन अतीत की यादों को संजोता हुआ व्यतीत होता है ....चाहे यादें फिर कैसी भी हों ...! आपका आभार ..!
ReplyDeleteजीवन का दर्पण है किताब
ReplyDeleteबहुत सुन्दर
some pople says that saying and doing r 2 different things but in your matter these lines r false.bcause ur saying and doing both r same and it really suits ur stye and status
ReplyDeletewah wah! kya khoob likha hai
ReplyDeleteacchi lagi kavita.......
ReplyDeletewow kya likha h di.........:)
ReplyDeletesahi ja rahi hai preeti di
ReplyDeletevery nice priti bahut jivit ehsas hain...
ReplyDeleteकुछ लम्हे टूटे फूटे
कुछ यादें धूमिल सी
सहमी सी कुछ खुशियाँ
कुछ रातें बदनाम पड़ी
बेचैन से कुछ सपने
वफ़ा भी बेआबरू थी
लूट चूका था वो घर
दीवारें शर्मिंदा खड़ी थी
तभी दरवाजे से
एक आवाज़ आती है
बेशक्ल वो ग़मगीन
आवाज़
मुझसे पूछ रही थी
"इस वीराने में क्या
ग़म के लिए भी कोई आसरा है" ?
तुमने ही इस ग़म को मेरा पता दिया होगा जरुर ...अक्षय-मन
पहली बार आना हुआ आपके ब्लॉग पर , अच्छा लगा |
ReplyDeleteसुन्दर रचना
lajwaab prastuti......
ReplyDelete.............
ReplyDeleteUniversity of Allahabad good... Mass Communication & Journalism... very good ... kvita krne ka pryash ,,,, sundr
wah kya baat hai............cretivity jaag raha hai!!!
ReplyDeletemeri yadon men
ReplyDeletevo shahar hai jo,
use kaise laotaoge tum
सुन्दर रचना , सुन्दर भावाभिव्यक्ति , बधाई.
ReplyDeleteकृपया मेरे ब्लॉग पर भी पधारने का कष्ट करें.
nice
ReplyDeleteriyazmeraj@gmail.com