हाँ मैंने मुखौटा पहना है
सच में झूठ का,
सादगी में दिखावटीपन का,
अंजानो में अपनेपन का,
दुःख में सुख का
एक मुखौटा मैंने भी पहना है..
जिसमे छिपा रखे है मैंने
अपने किरदार
सिर्फ अपने लिए...
मेरी पहचान बनाता
या छिपाता "मुखौटा"....ठीक वैसे ही
जैसे एक साधारण से
चेहरे को खूबसूरत बनाता
सौदर्य-प्रसाधन
तमाम बुराइयों को छिपाता
धन और बल .... प्रीति पोरवाल
होगी तुमसे ऐसे
मुलाकात
सोचा न था
न गिला शिकवा न कोई शिकायत
पर होना होगा दूर ऐसे
सोचा न था
अनछुआ सा साथ
वो तेरी अनकही सी बात
वो अपनापन
और ढेर सारा प्यार
सब कुछ खत्म होगा ऐसे
सोचा न था
सुन्दर
ReplyDeletegud one
ReplyDeletebadhiya
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